*आज के समय* *में एक अच्छे या बुरे की परिभाषा उसके कार्यों से नहीं अपितु निजी विचारों के आधार पर होती है। अलग-अलग विचारों के आधार पर कुछ लोग जिसे अच्छा कहने में लगे हैं, उसी को कुछ लोग बुरा भी कह रहे हैं।*
*एक झूठे आदमी के लिए हम तब अच्छे हैं, जब हम उसकी हाँ में हाँ मिलाकर उसका साथ दें और उसी के लिए तब हम बड़े बुरे बन जाते हैं जब हम झूठ में उसका साथ देना बन्द कर देते हैं। हम एक गलत काम करने वाले आदमी की नजरों में तब तक बुरे हैं, जब तक कि हम "गलत कार्यों" में उसका साथ नहीं दे देते। हम जिस दिन से उसका साथ देना शुरू कर देंगे उसी दिन से उसकी नजरों में हमारी परिभाषा एक अच्छे आदमी की हो जाएगी।*
*एक झूठे आदमी के लिए हम तब अच्छे हैं, जब हम उसकी हाँ में हाँ मिलाकर उसका साथ दें और उसी के लिए तब हम बड़े बुरे बन जाते हैं जब हम झूठ में उसका साथ देना बन्द कर देते हैं। हम एक गलत काम करने वाले आदमी की नजरों में तब तक बुरे हैं, जब तक कि हम "गलत कार्यों" में उसका साथ नहीं दे देते। हम जिस दिन से उसका साथ देना शुरू कर देंगे उसी दिन से उसकी नजरों में हमारी परिभाषा एक अच्छे आदमी की हो जाएगी।*
*अत:* *हमारी अच्छाई भी कई लोगों को रास नहीं आयेगी और बुराई का तो कहना ही क्या ? इसलिए जब हम* *"लोग क्या कहेंग"* *पर ध्यान ही नहीं देंगे तो फिर "क्यों कहेंगे लोग ?*
*हमारा काम है सही रास्ते पर चलना, बेहिचक, बेपरवाह ....*☺☝
*हमारा काम है सही रास्ते पर चलना, बेहिचक, बेपरवाह ....*☺☝
*आज का दिन शुभ मंगलमय हो।*
*सन्तजन कहते हैं कि जीव की जैसे जैसे भगवद आसक्ति बढ़ती है वैसे वैसे संसारासक्ति घटती है।प्रभु से मन का दूर होना ही बन्धन है ।प्रभु के चरणों में मन रहना ही प्रभु के साथ एकाकार होना है।*
*सन्तजन कहते हैं कि जीव की जैसे जैसे भगवद आसक्ति बढ़ती है वैसे वैसे संसारासक्ति घटती है।प्रभु से मन का दूर होना ही बन्धन है ।प्रभु के चरणों में मन रहना ही प्रभु के साथ एकाकार होना है।*
*लौकिक रूप के प्रति जितनी आसक्ति है उतनी यदि भगवान में हो जाय तो संसार के बंधन छूट जायें।श्री कृष्ण अतिशय सुंदर हैं।उनका दर्शन करने के बाद संसार का सौंदर्य सुहाता ही नहीं है।*
*जगत सुंदर है ऐसा मानने से कामदृष्टि उत्पन्न होती है।श्री कृष्ण कथा का श्रवण ,चिंतन , मनन करने से प्रभु के साथ तन्मयता सहज रूप से हो जाती है।*
*इस संसार में अनेक प्रकार के लोग हैं जो अमनी जिंदगी अपने सोच के आधार पर जी रहे हैं ! हर कोई जिंदगी के दौड़ में शामिल है ! एक दुसरे को पछाड़ना ही जिंदगी का मक़सद बन गया है ! आज किसी के पास वक़्त नहीं है ! अपनों के लिए भी नहीं ! सब जिंदगी जी रहे हैं , लेकिन कहीं सुकून नहीं कहीं शान्ति नहीं ! परमात्मा के बारे में जानने का बात तो दूर , आज कल तो परमात्मा भी शक के दायरे में है ! परमात्मा एक से कई बन गए हैं ! अब तो इस बात पर लड़ाई होती है कौनसा परमात्मा श्रेष्ठ है?*
*क्या यही है जीवन ? जन्म से मृत्यु तक हमें सिर्फ संघर्ष करना चाहिए ? क्या है जीवन का अर्थ और उद्देश्य ?इस अनमोल मनुष्य जीवन को सही मार्ग में लगा कर परमात्मा को जानना ही हमारा ध्येय होना चाहिए ! यह मुस्किल जरूर है लेकिन नामुमकिन नही
*सन्तमत विचार- सत्संग की बहूत महिमा है जीवन मे सत्संग को हमेशा बनाए रखना चाहिये ओर जब भी ओर जहां भी सत्संग सुनने या जाने का मौका मिले तो दूनिया वालो की परवाह किये बिना ही पहूंच जाना चाहिये क्योकि सत्संग बहुत दुर्लभ है ओर जिसे सत्संग मिलता है उसपर विशेष कृपा होती है भगवान की!*
*धन ज्यादा होने से मनुष्य बड़ा नहीं हो जाता और सौंदर्य, रूप-लावण्य आ जाने से मनुष्य सुंदर नहीं हो जाता लेकिन सुंदर से सुंदर जो चैतन्य आत्मा-परमात्मा है उसके करीब जितने अंश में मनुष्य जाता है वह उतना ही सुंदर हो जाता है।*
*अमूल्य जीवन के अमूल्य समय को निरर्थक वाद विवाद में नष्ट मत करो -भगवान को भजो।*
*जो साँसे भगवान की याद में बीत पायी,जो घड़ियाँ उनकी स्मृति में बीतीं,वे ही सफल और सार्थक हो पायीं।जीने को तो पशु पक्षी भी जी लेते हैं,पेड़ पौधे और वृक्ष में भी प्राण है,लेकिन जो प्रणेश्वर के लिये,भगवान के लिये जिया और मरा उसके जीवन और मृत्यु दोनो सार्थक भी हुए और यादगार भी।
*.....जीवन में कुछ समय के लिए उदास रहने और हमेशा नाखुश बने रहने में बहुत फर्क है।यदि कुछ समय के लिए उदासी है तो हवा की ताजी बहार के संग यह उड़ जाती है, गायब हो जाती है, लेकिन यदि व्यक्ति को नाखुश रहंने की आदत हो गई है तो फिर किसी भी तरह की अच्छी परिस्थिति क्यों न हो, वह दुःखी रहता है, उसे खुश नहीं किया जा सकता 'हम उतने ही खुश होते हैं, जितना अपने को खुश रहने के लिए तैयार करते हैं ' खुशियों का गहरा संबंध देने के भाव से है....*
*व्यक्ति के मन में इच्छाएँ बहुत हैं। उनसे विचार भी बहुत पैदा होते हैं। विचार कुछ अच्छे भी होते हैं और कुछ बुरे भी होते हैं। क्योंकि इच्छाएँ भी व्यक्ति में दोनों प्रकार की हैं, कुछ अच्छी और कुछ बुरी। अच्छी इच्छाएं तथा अच्छे विचार तो मन में रखें, उनके अनुसार अच्छी योजनाएं बनाएँ, तथा अच्छे कर्म करें। यह आपके लिए हितकर होगा।*
*परंतु बुरी इच्छाएं और बुरे विचार त्याग करने योग्य हैं। यदि बुरे विचार आप छोड़ देंगे, तो उससे बुरी योजनाएं भी नहीं बनेंगी, तथा बुरे कर्म भी नहीं होंगे।*
*यदि आप ऐसा करेंगे, तो पाप कर्म से बचेंगे। उनके दुखरूप फलों से बचेंगे। शुभ कर्म करेंगे और सदा सुखी रहेंगे। इसलिये ऐसा प्रयत्न करें।*
*परंतु बुरी इच्छाएं और बुरे विचार त्याग करने योग्य हैं। यदि बुरे विचार आप छोड़ देंगे, तो उससे बुरी योजनाएं भी नहीं बनेंगी, तथा बुरे कर्म भी नहीं होंगे।*
*यदि आप ऐसा करेंगे, तो पाप कर्म से बचेंगे। उनके दुखरूप फलों से बचेंगे। शुभ कर्म करेंगे और सदा सुखी रहेंगे। इसलिये ऐसा प्रयत्न करें।*
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